नमस्कार दोस्तो आपके अपने वेबसाइट में आपका स्वागत है,दोस्तो आपको मै अक्सर नयी नयी जानकारी देता रहता हूं ,और कई टेक्नोलाजी के साथ हमारे सांस्कृतिक विरासत के बारे में भी जानकारी देता रहता हूं असी कड़ी में मै आज आप लोगो को बेहद ही रोचक या कहे तो छत्तीसगढ़ का देश के साथ विदेशों में नाम रौशन करने वाली स्टार के बारें में बताने जा रहा हूं। दोस्तो आज मै विश्व विख्यात पंडवानी गायिका के बारें में बताने जा रहा हूं,तो दोस्तो आइयें जानते है पंडवानी गायिका के बारें में


नाम - तीजन बाई
जन्म
24 अप्रैल , 1956
गनियारी ग्राम, भिलाई,
दुर्ग जिला, छत्तीसगढ़
व्यवसाय
पंडवानी लोक गीतकार
सम्मान
जीवनसंगीतुक्का रामपुरस्कार
सम्मानअन्य
पद्म श्री - 1988
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार- 1994
संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार- 1995
पद्म भूषण -2003
नृत्य शिरोमणि 2007
प्रदेश और देश की सरकारी व गैरसरकारी अनेक संस्थाओं द्वारा पुरस्कृत तीजनबाई मंच पर सम्मोहित कर देनेवाले अद्भुत नृत्य नाट्य का प्रदर्शन करती हैं। ज्यों ही प्रदर्शन आरंभ होता है, उनका रंगीन फुँदनों वाला तानपूरा अभिव्यक्ति के अलग अलग रूप ले लेता है। कभी दुःशासनकी बाँह, कभी अर्जुन का रथ, कभी भीम की गदा तो कभी द्रौपदी के बाल में बदलकर यह तानपूरा श्रोताओं को इतिहास के उस समय में पहुँचा देता है जहाँ वे तीजन के साथ-साथ जोश, होश, क्रोध, दर्द, उत्साह, उमंग और छल-कपट की ऐतिहासिक संवेदना को महसूस करते हैं। उनकी ठोस लोकनाट्य वाली आवाज़ और अभिनय, नृत्य और संवाद उनकी कला के विशेष अंग हैं|
तीजनबाई के बारे में कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
1. भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के पंडवानी लोक गीत-नाट्य की पहली महिला कलाकार हैं।
2. देश-विदेश में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाली तीजनबाई को बिलासपुर विश्वविद्यालय द्वारा डी लिट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया है।
3. सन 1988 में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री और 2003 में कला के क्षेत्र में पद्म भूषण से अलंकृत की गयीं।
उन्हें 1994 में संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार तथा 2007 में नृत्य शिरोमणि से भी सम्मानित किया जा चुका है।
4. भिलाई के गाँव गनियारी में जन्मी इस कलाकार के पिता का नाम हुनुकलाल परधा और माता का नाम सुखवती था।
5. नन्हीं तीजन अपने नाना ब्रजलाल को महाभारत की कहानियाँ गाते सुनाते देखतीं और धीरे धीरे उन्हें ये कहानियाँ याद होने लगीं।
6. उनकी अद्भुत लगन और प्रतिभा को देखकर उमेद सिंह देशमुख ने उन्हें अनौपचारिक प्रशिक्षण भी दिया।
7. 13 वर्ष की उम्र में उन्होंने अपना पहला मंच प्रदर्शन किया। उस समय में महिला पंडवानी गायिकाएँ केवल बैठकर गा सकती थीं जिसे वेदमती शैली कहा जाता है।
8. पुरुष खड़े होकर कापालिक शैली में गाते थे। तीजनबाई वे पहली महिला थीं जो जिन्होंने कापालिक शैली में पंडवानी का प्रदर्शन किया।
10. तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से लेकर अनेक अतिविशिष्ट लोगों के सामने देश-विदेश में उन्होंने अपनी कला का प्रदर्शन किया।
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