अन्य योजनाओं के भ्रष्टाचार से ध्यान भटकाने के लिए मनरेगा योजना बनती है टारगेट, अन्य विभागों की योजनाओं में होते हैं बड़े गड़बड़झाले।



करोड़ो के घोटालों पर नही हजारों की गड़बड़ियों में उलझे रहते हैं लोग, छोटे कर्मचारी बनते हैं शिकार बड़े भ्रष्टाचारी जनता व मीडिया की पहुच से रहते हैं दूर।
मनरेगा की भांति हर विभागीय योजनाओँ की आय व्यय सम्बन्धी ऑनलाइन फीडिंग की दी जाए नागरिको को जानकारी।

रअसल आजकल भ्रष्टाचार की जड़े इतनी गहरी और मजबूत हो चुकी हैं कि इसे समाप्त करना देश के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती सी बन गई है।




जकल ग्रामीण क्षेत्र में संचालित सरकारी योजनाओं में से ज्यादातर मनरेगा आम आदमी व मीडिया के निशाने पर रहती है वह इसलिए कि इस योजना के नियमो व प्रावधानों का गांव-गांव अपेक्षाकृत व्यापक प्रचार प्रसार हुआ है, आम आदमी इस योजना की बेसिक जानकारियां रखता है जबकि अन्य योजनाओं के नियमो की न तो साधारण व्यक्तियों को जानकारी है न जागरूक नागरिकों को।


सरकार के स्तर से मनरेगा को भ्रष्टाचार मुक्त बनाने व पारदर्शिता लाने हेतु जितने प्रयास मनरेगा में होते हैं उतने न तो अन्य ग्रामीण स्तर की योजनाओं में होते दिखते न अन्य विभागों की बड़ी परियोजनाओं में।

सड़कें बनते ही उखड़ रही, पुल पहली बारिश भी नही झेल पाते, बांध बह जाते, नहरों की लाइनिंग गुणवत्ताहीन हो रही है, पेयजलापूर्ति सम्बन्धित योजनाओ पर पर मोटी धनराशि का अधिक व्यय व स्वास्थ्य विभाग जैसे विभाग भी पीछे नही रहते जिनके हाथों में लोगो की जान बचाने का दायित्व रहता है।



पशुपालन, पशुचिकित्सा, लोक निर्माण(PWD) ,भूमि संरक्षण, कृषि विभाग,सिचाई विभाग,ग्रामीण अभियंत्रण,लघु सिंचाई जैसे आदि दर्जनों विभाग व निधियां है जिनमे बड़ी राशि विकास कार्यो के लिए आती है किंतु इनके कार्यो और व्यय विवरण की आम आदमी को कोई जानकारी तक नही रहती न ही इनकी तकनीकी भाषा आमतौर पर किसी को समझ आती है।

मनरेगा वृक्षारोपण पर सबकी नजर रहती लेकिन सिचाई विभाग द्वारा क्योलरी बांध के सामने लगे हजारों पौधे के गायब हो जाने पर किसी की निगरानी नही,आम के हजारों पौधे नष्ट हो गए। यह सब तो महज बानगी है।
कास मनरेगा वृक्षारोपण भी सुरक्षित होने लगे,तार फेंसिंग व रखवाली के साथ तो निश्चित रूप से हजारों पौधे पेड़ बन पाएंगे।



अतः हमें वह मानसिकता बदलनी होगी कि अपेक्षाकृत अच्छी बन रही योजनाओं में में बुराई खोजने की बजाह बुराई उनमे खोजे जो बेहतर बनने की होड़ से कोसों दूर है और उनमे सरकारी फंड की मोटी धनराशि का दुरुपयोग होता है।
सरकार को इस सम्बंध में मानव शक्ति तैयार करने के लिए आम जन को प्रशिक्षित करना होगा, मैनपॉवर से ही भ्रष्टाचार पर नकेल कसी जा सकेगी, सरकार हर विभाग के आय व्यय सम्बन्धी विवरण व कार्यो के विवरण सहित जानकारी सरल भाषा मे जिलास्तर पर विभागवार डायरी में छपवाकर जनता तक पहुचाने का कार्य करना चाहिए ताकि इन सब चीजो पर जनता की निगरानी बढ़ेगी।
सोशल ऑडिट सिर्फ दो चार योजनाओ में नही बल्कि हर सरकारी योजना का सशख़्त और प्रभावी "सोशल ऑडिट "शुरू कराने के सख्त नियम सरकार को बनाने होंगे....
मनरेगा ग्रामीण क्षेत्र की अधिक बजट व्यय वाली योजना है इसलिए इसकी निगरानी भी प्राथमिकता से करनी जरूरी है लेकिन सरकार को इस योजना में भ्रष्टाचार की मुख्य बजह से सम्बंधित पहलुओं पर भी चिंतन करना चाहिए।




इस योजना में कार्यरत कार्मिंको का अल्प मानदेय,शिथिल निगरानी व प्रशासनिक मद का दुरुपयोग इस योजना की बदहाली के मुख्य कारण है लेकिन फिर भी ग्रामीण भारत की मनरेगा एकलौती ऐसी योजना है जिसमे सर्वाधिक जनसहभागिता,पारदर्शिता व जवाबदेही सुनिश्चित हो पा रही है फिर भी जिम्मेदारों की मूक सहमति से यह योजना कुछ जगह बड़े गड़बड़झालो की शिकार हो जाती है जिससे पूरी योजना बदनाम सी होने लगती है।

उच्च अधिकारीयों द्वारा मनरेगा का धरातलीय सच जानने हेतु औचक निरीक्षण सराहनीय है, इससे निगरानी व सजगता बढ़ेगी, मीडिया ने कवरेज भी बेहतर की ऐसी ही कवरेज अन्य विभागों के बड़े घोटाले उजागर करने में भी हो तो बहुत बेहतर रहेगा।

नागरिकों की सिर्फ मनरेगा योजना में भ्रष्टाचार खोजने की मानसिकता बन गई है |



सम्मानीय मीडिया समुदाय व जागरूक नागरिको से अपील है कि जिस तरह से वह मनरेगा योजना के प्रति जागरूक व सजग हुए हैं वह ठीक इसी तरह अन्य योजनाओं के प्रति भी सजग बनें।

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